टुकड़े चाहत के
कुछ बातें दिल से निकल कर तुरंत ही शब्दों का रूप ले लेती है, ऐसे ही कुछ शब्दों को लयबद्ध कर आपके समक्ष प्रकट कर रहा हूं, पढ़िए काव्य ( टुकड़े चाहत के)
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टुकड़े चाहत के - I
याद मुझे वो चांदनी रात
और सांझ की तेज़ बरसात
तुझसे मेरी पहली मुलाकात,
तेरे नयनों से वो चोट अघात।
घायल जो मेरा मन हुआ
हृदय में तेरा आगमन हुआ
बिजली कौंधी तब सहास,
फिर अंधकार ने फैलाया पाश।
लोगों ने तब कोहराम किया
मैंने तेरी आंखों में आराम किया,
उस क्षण मैंने सुकून जो पाया
मानो ग्रीष्म में कोई शीतल छाया,
प्रेम जो हृदय में कहीं दफ़न था
तन मन में है आज भर आया।
फिर वर्षा की वो पहली बुंदे
मानो केवल तुझको ढूंढे,
आसमां के वो शीतल मोती
उन्माद में तेरे सर को चुमें।
पाषाण शरीर पूरा मेरा,
केवल दृष्टि तुझ पर फेरा,
आंखों पर पट्टी बंधी फिर,
जिस पर केवल चित्र है तेरा।
न जाने कब था गर्जन ठहरा
कब छटा अंधकार वो गहरा
नील गगन को साथ लेकर,
आया कब एक नया सवेरा।
टुकड़े चाहत के -II
आओ कभी उन्हीं पुरानी बाजारों में
छिपा नहीं मैं दूर कहीं सितारों में
आज भी अपने ख्वाब में जीता
मैं फिरता इन्हीं गलियारों में।
छवी तेरी आंखो में लेकर,
खुसबू तेरी सांसों में लेकर,
व्यथित रहता हूं शाम सवेरे,
ख्वाब तेरी यादों में लेकर।
क्षण भर का वो चांद प्यारा,
अधूरा सा वो ख्वाब हमारा,
दो पल की मुस्कान देकर,
फिर छाया घोर अंधियारा।
सुना गगन है तेरे बिन
व्यथित हैं रातें, अंधेरे दिन
ख्वाब जो मेरे अधूरे से हैं
कैसे हों पूरे, तेरे बिन।
लबों पे तेरी ही बात है
दिल में कुछ जज़्बात है
नहीं जो तू है साथ मेरे
सुनी सी ये हयात है।
शरीर में कोई जान नहीं
लबों पे कोई मुस्कान नहीं
कोई मुझे बता दे इतना
पता मेरा एक घर है,
कोई सुना शमशान नहीं।
न जानूं मैं, हंसूँ या रोऊं
जिंदगी के छोटे धागे में
कितने ख्वाब, मैं पिरोऊं
विवाद बस इस बात पे अब
क्यों चिर नींद अब मैं न सोऊं
टुकड़े चाहत के-III (UPCOMING){अगर वो मिल जाए तो ही आगे बढ़ पाएगी ये कविता}[खोज जारी है]
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