दर्द- ए- सुकून
EMERGING FROM THE SHADOWS
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कुछ ज्यादा नहीं, थोड़े से शब्द हैं, बाकी मेरी आंखे बयां करती हैं
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तुझसे दूर आना तो यूं ही आसान न था, तेरे करीब आने में अब मुश्किलें नई हैं।
यादों में सिर्फ तुझे सजाया है, सजने तैयार बैठे, सितारे कई हैं
वो कहते हैं, मैं बदल गया हूं...
जो जानते नहीं हकीकत मेरी..
मुझे, भूल गए वो लोग सारे।
जिन्हे होती नहीं अब जरूरत मेरी।
होश में केवल दर्द बाकी है, मदहोशी में आराम तो है। तू भले न है साथ मेरे, मेरे गम का साथी, मेरा जाम तो है।
तुम कहते हो, मैं बातें हजार करता हूं
क्या करूं, जरूरत है, तुम कुछ कहते नहीं
इसीलिए मैं ही इज़हार करता हूं।
इससे पहले की संभल पाऊं मैं थोड़ा तुम्हारी पहुंच के खुद को काफी दूर पाता हूं
थम जाती हैं वो बातें लबों पे आकर अक्सर जो बातें हर पल तुमसे कहना चाहता हूं
जो हो रहा है, होने दो...
आंखे रो रही हैं, रोने दो.,
जा चुकी है, जान मेरी.
सांसे खो रही हैं, खोने दो....
मुझे मुझसे मिला कर के, अक्सर रुला देते हो तुम..
दवा दर्द का कह कर के, जाम पिला देते हो तुम
यूं न डूब उसकी याद में इतना....
की आंखों में सैलाब आ जाए..
हम तो चाहते हैं उन्हें भुलाना...
पर तमन्ना है की उनके ख्वाब आ जाए।।
तुझे भूलना मैं जितना चाहूं, तेरा ख्वाब और निखरता है
मेरी ख्वाहिश को वो, मेरी शिकायत कहते हैं
मैं नज्में सुनाता हूं, लोग हिकायत कहते हैं
मैं बोलता हूं तो अल्फाज़ खामोश रहते हैं
मेरी बेबसी को लोग, मेरी इनायत कहते हैं
आंखें भूल जाएंगी उसे
हमने एक घूंट ही ली
वो दिल तक उतर आई
उसे भुलाने की ख्वाइश में हम शराबी हुए
वो तो न मिली, उसकी याद बहुत आयी
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